फिल्म ‘कुसुम का बियाह’ से खुलेगी सरकारी सिस्टम में आम आदमी को रही परेशानियों की पोल

कोरोना महामारी की घटनाओं को निर्देशक मधुर भंडारकर ने ‘इंडिया लॉकडाउन’ और अनुभव सिन्हा ने फिल्म ‘भीड़’ के माध्यम से अपने-अपने तरीके से पेश किया।

कोरोना महामारी के दौरान ऐसी न जाने कितनी घटनाएं घटीं, जिनका कभी जिक्र ही नहीं हुआ। निर्देशक शुवेंदु राज घोष ने फिल्म ‘कुसुम का बियाह’का निर्माण किया है, जो बिहार और झारखंड की एक सत्य घटना पर आधारित है।

कोरोना महामारी के चलते सरकार द्वारा लगाए गए लॉकडाउन के दौरान जो लोग जहां रहे वहां फंस गए। फिल्म ‘कुसुम का बियाह’ की कहानी बिहार से झारखंड गयी एक बारात के फंस जाने की घटना पर आधारित है। किस तरह से लॉकडाउन की वजह से न सिर्फ शहरों की बल्कि ग्रामीण अंचल में भी जिंदगियां थम गईं ।

साल 2000 से पहले बिहार झारखंड दोनों एक ही राज्य थे। राज्य के विभाजन के बाद दोनों राज्यों के बीच कई गहरे मतभेद हो गए। महामारी के चलते दो राज्यों की सीमा पर कुसुम की बारात फंसने की घटना को चंद समाचार पत्रों और स्थानीय टीवी चैनलों में ही जगह मिल पाई थी।