भारत देश के कई राज्यों में मशरूम को कुकुरमुत्ता के नाम से भी जाना जाता है | यह एक तरह का कवकीय क्यूब होता है, जिसे खाने में सब्जी, अचार और पकोड़े जैसी चीजों को बनाने के इस्तेमाल किया जाता है | मशरूम के अंदर कई तरह के पोषक तत्व मौजूद है, जो मानव शरीर के लिए काफी लाभदायक होते है | संसार में मशरूम की खेती को हज़ारो वर्षो से किया जा रहा है, किन्तु भारत में मशरूम को तीन दशक पहले से ही उगाया जा रहा है | हमारे देश में मशरूम की खेती को हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, कर्नाटक और तेलंगाना जैसे राज्यों में व्यापारिक स्तर पर मुख्य रूप से उगाया जा रहा है |
आपके पास खेत न हो, तब भी आप अच्छी फसल के माध्यम से अच्छी आमदनी कर सकते हैं। इसके साथ ही उसके सेवन से अपना सेहत भी अच्छा रख सकते हैं। इसके लिए आपको मशरूम की खेती करनी चाहिए। इसके लिए आप अपने पुराने मकान का प्रयोग में लाना होगा। मशरूम की तो वैसे अनेकों प्रजातियां हैं, लेकिन ओवेस्टर मशरूम खेती के लिए ज्यादा बेहतर है।
इस संबंध में उप निदेशक उद्यान ने कहा है कि 10 गुणा 10 फिट की मकान हो तो किसाने उससे ढाई माह में 50 हजार रुपये की आमदनी कर सकता है। मात्र 10 गुणा 10 फिट के मकान आसानी मशरूम के बीज के सौ बैग आसानी से टांगे जा सकते हैं। इससे दो कुंतल मशरूम निकल जाएगा। उसे सूखाने पर 25 किलो मशरूम निकलता है और ओवेस्टर मशरूम बाजार में लगभग 2000 रुपये किलो मिलता है। इस हिसाब से 50 हजार रुपये 10 गुणा 10 के घर में तीन माह में आसानी से निकल सकता है।
उन्होंने इस संबंध में बताया कि हमने 14000 बैग लगाया है। इस संबंध में उन्होंने कहा कि 100 बैग को लगाने में नौ से 10 हजार रुपये खर्च आता है और आमदनी 50 हजार रुपये का मशरूम तीन माह में निकल जाता है। अनीस श्रीवास्तव का कहना है कि 100 बैग में मशरूम लगाने के लिए भूसा दो कुंतल लगता है। भूसे को ड्रम में पानी डालकर उसमें फार्मोलिन, बेवस्टीन मिलाकर भूसे को ठोस बना लिया जाता है। इसके बाद सौ बैग में 18 से 20 किलो ओवेस्टर का बीज लगता है, जिसे लेडर बनाकर पालिथीन में बीच-बीच में विधि पूर्वक डालकर उसे टांग दिया जाता है। एक सप्ताह में जब उसमें सफेद दिखने लगे तो पालीथिन को काटकर निकाल दिया जाता है। दो से ढाई माह में ओवेस्टर मशरूम तैयार हो जाता है।
यह बता दें कि शाकाहार में मशरूम सर्वाधिक पोषक तत्वों से भरपुर सब्जी है। इस संबंध में बीएचयू के पंचकर्म विभाग के विभागाध्यक्ष डाक्टर जेपी सिंह ने बताया कि प्रोटीन से लेकर तमाम पोषक तत्वों की भरपुर मात्रा होने के कारण शाकाहार में मशरूम का उत्पाद स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक है। इससे कैंसर रोधी भी माना जाता है। इसके सेवन से कई तरह के कैंसर से बचा जा सकता है।
विश्व में मशरूम की कई उन्नत किस्मो का उत्पादन किया जाता है, किन्तु भारत में मशरूम की सिर्फ तीन प्रजातियां पाई जाती है | जिनसे खाने के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है |
ढिंगरी मशरूम
इस किस्म की मशरूम की खेती को करने के लिए सर्दियों के मौसम को उचित माना जाता है | सर्दियों के मौसम में इसे भारत के किसी भी क्षेत्र में ऊगा सकते है, किन्तु सर्दियों के मौसम में समुद्रीय तटीय क्षेत्रों को इसकी खेती के लिए अधिक उपयुक्त माना जाता है | क्योकि ऐसी जगहों पर हवाओ में नमी की 80%मात्रा पाई जाती है | मशरूम की इस किस्म को तैयार होने में 45 से 60 दिन का समय लगता है |
दूधिया मशरूम
दूधिया मशरूम की इस प्रजाति को केवल मैदानी इलाको में उगाया जाता है | मशरूम की इस किस्म में बीजो के अंकुरण के समय 25 से 30 डिग्री तापमान को उपयुक्त माना जाता है | इसके अलावा मशरूम के फलन के समय इसे वक्त 30 से 35 तापमान की आवश्यकता होती है | इस किस्म की फसल को तैयार होने के लिए 80 प्रतिशत हवा में नमी होनी चाहिए |
श्वेत बटन मशरूम<
मशरूम की इस किस्म का इस्तेमाल खाने में सबसे अधिक किया जाता है | श्वेत बटन मशरूम की फसल को तैयार होने के लिए आरम्भ में 20 से 22 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है | मशरूम फलन के दौरान इन्हे 14 से 18 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है | इसकी खेती को अधिकतर सर्दियों के मौसम में किया जाता है, क्योकि इसके क्यूब को 80 से 85% वायु नमी की आवश्यकता होती है | इसके क्यूब सफ़ेद रंग के दिखाई देते है, जो कि आरम्भ में अर्धगोलाकार होते
शिटाके मशरूम किस्म<
मशरूम की इस किस्म की खेतो को जापान में विस्तार रूप से किया जाता है | इसके क्यूब आकार में अर्धगोलाकार तथा उनमे हल्की लालिमा दिखाई देती है | इसके बीजो को आरम्भ में 22 से 27 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है, तथा क्यूब के विकास के दौरान इन्हे 15 से 20 डिग्री तापमान की जरूरत होती है |